में हाथ लगाया तो पानी नदारत था
सोचा चलो बाटल से ही पानी पिया जाए
पर ये क्या बोतल खाली थी
नींद में तो थी ही चिल्ला पड़ी मां ये क्या तुम से
बाटल भी भरी नहीं जाती और मटका भी खाली
पर ये क्या मां का कोई प्रतिउत्तर नहीं आया
नहीं ग्लास में पानी ,न डांटने की आवाज
मैं जैसे भूल ही गई कि परसों ही तो मां को
मोक्षधाम पहुंचा कर आई थी
कोख से लेकर आज तक उसी से लड़ी हूं
उम्र के इस पड़ाव पर भी उसने मेरा ध्यान रखा
हर दर्द हर चोट पर मैंने उसे पुकारा ओ मां
भूख प्यास पर , भी पर आज याद ही नहीं
रहा कि मां गुजर गई सिसक पड़ी तो पड़ी
प्यास भूल गई ,
मां ओ मां कहकर चीख पड़ी , तभी देखा तो
पास मां खड़ी थी हाथ में पानी का ग्लास था
क्या हुआ क्यो रो रही हो बुरा ख्आब देखा क्या
क्या मैं चौंक पड़ी ये ख्आब था
ओ मां अच्छा था कि ये ख्आब था
अर्चना जोशी
भोपाल मध्यप्रदेश
स्वरचित और मौलिक
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कविता