एक पत्र माँ के नाम : आ जाओ अब हे! माँ

एक पत्र माँ के नाम : आ जाओ अब हे! माँ 

शक्ति का पर्व है, नवरात्र है।चारों ओर प्रत्येक सनातनी घरों में आराधना हो रही है।माँ की जयकारे एवं प्रार्थना के गीत गाए जा रहे हैं।विश्वास आस्था की गहराई में लोग डुबकी लगा रहे हैं। यही विश्वास व अदृश्य सत्ता है जो हमे उचित मार्ग व विपरीत परिस्थितियों में सम्बलता प्रदान करती है। पर्व माँ महाकाली, महालक्ष्मी , महासरस्वती की आराधना नव रात्रों का एक यज्ञ/ अनुष्ठान है ; जो नवमी को सम्पन्न होता है। मार्कण्डेय पुराण में माँ दुर्गा जी के नवरात्र का विधान है एवं शतपथ ब्राह्मण में भी नवरात्र का उल्लेख मिलता है।वर्तमान में घरों में आज कैद लोग , भय ग्रस्त एवं मानव - मानव पर  अविश्वास का पर्दा लगा हुआ है।वह भी श्वांस का इतना भय की माँ वात्सल्यता से भी बच्चे को मुहँ से नही लगा पा रही है।वैसे भी कुछ दौर से लोग अपने पड़ोसियों या परिवारों से मुँह ढँक कर या मुँह फेर कर चलना प्रारम्भ कर दिए हैं। माँ "माम " बन कर अबोध बेटे का जूठन  तक पसंद नही करती और "डैड" भी बेड में सोए - सोए मोबाईल में व्यस्त हैं ; बच्चों से मुँह फेर कर बैठना आदत बन गईं है। दादा  - दादियों का कहानी गीत सुनाने की परम्परा स्वयं कहानी बन गयी है।पशु  - पक्षी भी लोगों से डर कर कहीं दुबक गए थे।आज हमारे घर में कैद होने से वो बाहर आ गए हैं ;उन्मुक्त हो गगन में विचरण कर रहे हैं , मधुर संगीत गुनगुना रहे हैं।एक पक्ष का शक्तिशाली होना दूसरे पक्ष का कमजोर पड़ना समय व प्रकृति है।परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है माँ। जैसे हर प्रकृति परिवर्तन में चार बार आप आती हो अपनों के पास  ; एक नव सन्देश ! एक नई ऊर्जा ! ले कर , लेकिन हम कहाँ मानने समझने वाले ; हमारे पास उपलब्ध भौतिक संसाधन की प्रचुरता , वर्तमान में राजनीतिक कद एवं विविध सत्ता ने दम्भी मानव को मदान्ध कर दिया है कि ;  उचित अनुचित की धाराएँ स्वनिर्मित कर ले रही है।हम मानव को तो प्रकृति को भी जीतने का दर्प था वैसे ही दर्प जैसे महिषासुर को अपनी शक्ति का दर्प था।वैसे भी माँ ; हम अपनी वैभवशाली अराजक तत्वों, विघटनकारी तत्वों, नक्सलवादी , आतंकवादी, आदि की संख्या बढ़ाकर हम "अहं " को ही बढ़ा ही रहे थे कि सूक्ष्म जीव आ गया और हमारा अंहकार टूट गया।अब आप आ जाओ माँ।चारों ओर हा - हा कार है, ह्रदय में अंधकार है, करुणामयी पुकार है।पहले कोयले व कल कारखानों की कालिमा व्याप्त थी अब ; सुनहरे भविष्य की आशाओं को लेकर अंधकार व्याप्त है।बच्चों के सामने शिक्षा की मशाल की ज्योति  धुंध हो चुकी हैं ।अपने बच्चों की खातिर अब आना पड़ेगा माँ।विद्यालय के कपाट एक वर्ष से बन्द पड़े हैं।बच्चे तो अबोध हैं , मार्गदर्शन देने की जरूरत है।वही देश के भविष्य हैं ।उन्हें ही मजबूती से बेरोजगारी एवं अन्य कुरीतियों से लड़ना है। अगर हम उन्हें गलत दिशा देने की भावना भी मन मष्तिष्क में लावें तो मन विचलित कर देना। भेड़ चाल की दुनिया में जो सँस्कृति ,सत्यता ,संस्कार सनातन, सामाजिकता ,राष्ट्रीयता को दूषित करने में जुटे एक विशाल वर्ग समूह का मन आतुर व उत्साहित है उन समूह का नाश करने अब आना पड़ेगा। अराजकता अत्याचार को मिटाने , वैश्विक आपदा का अंत करने , अब अपने बच्चों की मार्मिक पुकार सुन कर विश्व को आनंद देने वाली एवं इंद्र से भी नमस्कृत आ जाओ अब  - हे ! माँ

            - विजय पंडा (घरघोड़ा)
                 रायगढ़ छ0ग0

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