आज महकी हूँ मैं फाग के रंग सी

आज महकी हूँ  मैं फाग के रंग सी, तब नजर  मीत से जाके टकरा गई।
 मूंद कर ये नयन, कर लिया है चयन,बूंद ये रंग की मेरे मन भा गई।। 


उसने बांहों में मुझको समेटा  था जब,
मैं भी सुधबुध भुला कर लिपटती रहीं ।
जब नजर से नजर का समागम हुआ,
लाज के बस हुई मैं सिमटती रहीं ।।
मन से मन का  मिलन इस तरहा से हुआ,
 तन के यौवन पे ज्यों, धुंध सी छा गई।
मूंद कर ये नयन, कर लिया है चयन,बूंद ये रंग की मेरे मन भा गई।। 

प्रीत में उसने अंधेरों को ज्यों ही छुआ,
 मन जो व्याकुल था मेरा वो बेसुध हुआ ।
मेरे अधरों का इंकार, इकरार था,
और हृदय कर रहा था मिलन की दुआ।।भावनाएं मेरी आनियंत्रित हुईं, 
दामिनी जैसे कोई सितम ढा गई।।
मूंद कर ये नयन, कर लिया है चयन,
बूंद ये रंग की मेरे मन भा गई।। 

रूप उसका लुभाता गया मन मेरा, ज्यो विकल काम भी  आह  भरने लगा।
चॅंद्रमा की छटा,  से हुआ अटपटा, एक चकोरा सा अंतस विचरने लगा।।
मैं विरह वेदना की तपन में  जली ,
युक्तियों से  पिया को रिझा आ गई।
मूंद कर ये नयन, कर लिया है चयन,बूंद ये रंग की मेरे मन भा गई।। 

नेह अंत:करण में बिखरता गया, एक तपस्वी की मैं बन गई साधिका।
वो मुझे श्याम जैसा नजर आ रहा, और पलक बन गई आज ज्यों राधिका।।
मन के तम की विषमता बदलते हुए,
प्रीत उर में दिवाली सी गहरा गई।
मूंद कर ये नयन, कर लिया है चयन,बूंद ये रंग की मेरे मन भा गई।। 
रचनाकार ✍️
पलक जैन हटा

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