भोर देखते मिट गई , तेरी शाम कलाम

भोर देखते मिट गई , तेरी शाम कलाम
उलझ पड़े निर्लज्ज बन , थोती राह विराम ।।
सुबह हुई रवि रात से , करता मात सलाम ।
तेरा ही बस चांद है , मामा बनत गुलाम ।।
डॉ अनुज प्रताप सिंह चौहान 
अलीगढ़ ।

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