माँ पर दोहे

माँ पर दोहे
करुणा किसलय से भरा, माता का दरबार।
सच्चा है दरबार यह,  सच्चा माँ का प्यार ।।

चरणों   मे वंदन करूँ,, घुटने  मस्तक  टेक।
कल्याणी वरदायिनी, शत-शत कोटि अनेक।।

स्वाहा ,स्वधा, ध्रुवा ,जया, जग की पालनहार ।
विविध  रूप नारायणी,  जन,गण के आधार।।

माता   की  दरबार  में, होती  जय-जय कार ।
बजे  ढोल   मृदंगम  भी ,आता  जब  त्योहार ।।

आत्म भाव की नींव पर,  रची  मनोहर  छंद ।
भवप्रीता विजया जया ,मिले स्नेह  बस चंद ।।
प्रमिला श्री तिवारी [धनबाद ]

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