करुणा किसलय से भरा, माता का दरबार।
सच्चा है दरबार यह, सच्चा माँ का प्यार ।।
चरणों मे वंदन करूँ,, घुटने मस्तक टेक।
कल्याणी वरदायिनी, शत-शत कोटि अनेक।।
स्वाहा ,स्वधा, ध्रुवा ,जया, जग की पालनहार ।
विविध रूप नारायणी, जन,गण के आधार।।
माता की दरबार में, होती जय-जय कार ।
बजे ढोल मृदंगम भी ,आता जब त्योहार ।।
आत्म भाव की नींव पर, रची मनोहर छंद ।
भवप्रीता विजया जया ,मिले स्नेह बस चंद ।।
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दोहा