ज़िन्दगी तो इक तमन्ना हैं इसी वजह से तो जीना हैं।
वर्ना ज़िन्दगी जीने का मकसद ही क्या होता।
ज़िन्दगी जीने का मजा ही कहां आता।
ये तमन्ना तो हैं जो ज़िन्दगी को...
जीने का एहसास दिलाती हैं।
आए हैं इस दुनिया में कुछ करने का...
एहसास जगाती है।
जिसने कोशिश करने की कोशिश की...
के कोशिश का हाथ थामा।
इस दुनिया में उससे दुजा ना होगा कोई खुशनुमा।
जो हैं तमन्ना रूह-ए-दिल के अंदर।
चाहे सहर हो या शब-ए-तारिक में सफर।
जब तक अपनी तमन्ना नहीं होगी पूरी।
चाहे फलक-ए-जमी सी क्यों ना हो दूरी।
चलते रहेंगे जब तक फासले ना हो कम।
इक ना इक दिन अपनी तमन्नाएं पाके रहेंगे हम।
जब तमन्ना हो जाएगी पूरी फ़िर ना होगी कोई मजबूरी।
"बाबू" फिर भी दिल कहता हैं ए मौत तू ठहर जा अभी।
के ज़िंदगी में मेरे अभी कुछ तमन्नाएं और भी हैं बाकी।
बाबू ✍️ भंडारी. "हमनवा" बल्लारपुर.(महाराष्ट्र)
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गज़ल