बैशाखी पंजाब
फसल कटनी वाला है।
केरल में विशु रूप
मग्न सब मतवाला है।
बिहार यहीं पतंग
उड़े धागा रोली से।
अतिपावन नववर्ष
आह सुन्दर बोली से।
औरंगजेब क्षीण
देख गुरू गोलबंदी।
था अति सख्त प्रहार
और आवाज़ बुलंदी।
दुश्मन माने हार
हुआ वह पानी-पानी।
खट्टे ज किये दाँत
याद आई तब नानी।
उत्तर भारतवर्ष
पर्व घर-घर होते हैं।
है खुशहाल किसान
रात खेत म सोते हैं।
यह दिन काला रूप
बाग जलियांवाला से।
हाँ किन्तु उड़े प्राण
क्रूर छलियावाला से।
क्रूर अहित अंग्रेज
उसे तब ही जाना था।
भारती गोलबंद
बाप उसके माना था।
धन्यवाद।
प्रभाकर सिंह
नवगछिया, भागलपुर
बिहार
Tags:
कविता