जो सोचता है खुद को घमंडी खुद ही कीलें ठुकवाता ।।
धर्म भाव जाति वाद से तुम ऊपर उठकर सोचा करो ।
शान्ति सौहार्द और स्नेह से ही विश्व सुन्दर हो जाता ।
आपसी द्वेष वैर भाव त्याग कुछ देश के बारे में भी सोचो ।
प्रेम का आवरण ही तो हर दिल हर मन में स्नेह उपजाता ।।
हिन्द की भूमि जो प्यार मुहब्बत से हम सबको रहना सिखाती ।
भारत की ये धरती असल में सबकी ही मां कहलाती ।
तुम कीलों का डर दिखाकर किसको डराने की कोशिश करते । यही बात तो तेरे मेरे मन में गहरी खाई पैदा करती ।
क्या तुम नहीं किसी माता के बेटे या नहीं किसी की तुम संतान ।
यही तो है दुर्गा काली लक्ष्मी सरस्वती इनके प्रति कैसी ज़ुबान ।
नवरात्र है नारी शक्ति का परिचायक कहलाता है ।
कोई हमें किस बात पर इन कीलों का भय दिखलाता है ।।
माता बहन बेटी से समझो नाता किसका नहीं होता है ।
नवरात्र में मां की पूजा होती और कोई हमको भय दिखलाता है ।।
कील ठोकनी है उन मनसूबों की ठोको जो बर्बादी पथ पर जाते हैं ।
इस भारत मां को जाति धर्म के वैर भाव से से जलाना चाहते हैं ।।
यही मां सरस्वती लक्ष्मी दुर्गा काली ही तो कहलाती है ।।
भक्तों को कील ठोकने से पहले सच भी जानना सीखो तो ।।
अभिशप्त नारी की हुंकार रण चंडी जब बन जाती है ।
पूरे विश्व में हा हा कार और विनाश लीला छा जाती है ।।
कोरोना का दंश देखो यह प्रकृति की बड़ी हुंकार कहलाती है ।।
पूरी विश्व में त्राहि-त्राहि इस नारी शक्ति के कारण ही आ जाती है ।।
लगाने हैं तो वृक्ष लगाओ जिससे प्रकृति सुरम्य हो जाती है ।।
कील ठोकने से पहले मन ही मन कुछ तो तुम थोड़ा शर्माओं ।।
वरना फिर हम कीलें ठोकेंगे तुम फिर कुछ भी न कर पाओगे ।।
अपने ही कर्मों से सदा सदा के लिए ही विनष्ट हो जाओगे।।
जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम
चन्द्र शेखर शर्मा मार्कण्डेय
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