चांदनी रात

चांदनी रात

सुहानी यादों को मैं
आज ताजा कर रहा हूँ। 
बैठकर बाग में उस चाँद को
पहले की तरह ही आज। 
अपनी आँखो से तुम्हें देखकर उसी दृश्य की परिकल्पना कर रहा हूँ।। 

ओढ़कर प्यार की चुनरिया, 
चांदनी रात में निकलती हो।
तो देखकर चांद भी थोड़ा, मुस्कराता और शर्माता है।
और हाले दिल तुम्हारा,
पूछने को पास आता है।
हंसकर तुम क्या कह देती हो,
की रात ढलते लौट जाता है।।

चांदनी रात में संगमरमर, 
की तरह तुम चमकती हो।
रात की रानी बनकर,
पूरी रात महकती हो।
और हर किसी को, 
मदहोश कर जाती हो।
और धरा पर प्यार के,
मोती बिखर देती हो।।

अपनी मोहब्बत से तुम,
सब को लुभाती हो।
काली रात में भी,
चांद को मिलने बुलाती हो।
भूल जाती हो प्यार में,
की पुर्णिमा को चांद आएगा।
और पूरी रात तुम्हे,
दिल से लगाएगा।।

जय जिनेन्द्र देव 
संजय जैन (मुम्बई)
03/04/2021

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