सर्व श्रेष्ठ हूं मैं, ये अहंकार बोलता है।
कौन क्या है यहां, स्वयं किरदार बोलता है।
तिनके नहीं होते अब दाड़ी में चोर की।
मौन फिज़ा में फक्त अत्याचार बोलता है।
निशा नहीं होती ज्ञान के भोर की।
हम में लगकर "अ" बर्बादी के द्वार खोलता है।
चाक गीरेबां चीरती चोट चाटु कारों की।
चिथडों से चीखती सादगी में मेहनत का श्रृंगार बोलता है।
नत है मष्तक, प्रारब्ध से उपजी श्रद्धा के आगे।
कब झुकाने को सर कोई मज़ार बोलता है।
सब नहीं होते आगाज़ क्रांति के।
मन हो बेमन,मन ही मन,मन को लाचार बोलता है।
जो देता है औरों को दिल खोलकर।
कदम कदम संग उसके सत्कार डोलता है।
एल एस तोमर प्रवक्ता तीर्थांकर महावीर विश्व विद्यालय मुरादाबाद यूपी
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कविता