लिखँ दुगी इस कलमो से मैं तकदीर भारत का।
अब तोडुगी मैं यहाँ सारे जंजीर भारत का।
भारत के दुश्मनों के भाग्य को लिखॅ दुंगी मैं कफन में।
मैं भारत की महिमा लिखॅ दुंगी दुनिया के कण-कण में।
ये घायल भारत माता की तस्वीर दिलों के अन्दर है।
उनकी तड़पन और पीड़ा की जो पीर दिलों के अंदर है।
ये पीड़ा जब पिघल-पिघल कर आँखो में भर जाता है।
हे पत्थर दिल दिलवालों को फिर जीना असहा हो जाता है।
इन सिंहों वाले सम्मानों का तनिक भी लिहाज किया होता ।
ये मच्छरों वाले अंदाजों को अब तक तुम त्याग दिया होता ।
तो मेरे प्यारे भारत के आज, ऐसे हालात नही होते।
जो इस पर बुरी नजर रख दे किसी में औकात नही होते।
इन्ही निष्ठुर भारतवासी को शहीदों की कुर्बानी याद दिलाने आई हूँ ।
हे जाग उठो पत्थर दिल, मैं तो तुम्हे जगाने आई हूँ ।
लगता है तेरी निष्ठुरता अब, भारतमाँ के सीने छलनी कर ही डालेगी ।
दो सौंप मुझे बागडोर भारत का, अब ये देश शेरनी संभालेगी ।
पूनम यादव
वैशाली बिहार से
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कविता