असली प्रकृति प्रेम वही
जैसे अपने प्राण।
अन्धाधुन्ध वृक्ष कटे
खुदकी कटनी मान।
खुदकी कटनी मान
सभी चीजें यूँ मरती।
होगा जो कल्याण
रखो हरी-भरी धरती।
प्रकृति ही सृजनहार
बने यह न कभी पगली।
जीवन होगा पूर्ण
त्याग निश्चित हो असली।
धन्यवाद।
प्रभाकर सिंह
नवगछिया, भागलपुर
बिहार
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कविता