युग बदला सभ्यता बदली
कुछ सभ्यताएं अपना अस्तित्व खो बैठी
मानव जीवन मृगमरीचिका में
अस्तित्व तलाशता
तलाश जारी पर क्षितिज तक पहुँच ना पाता
वक्त गतिमान है
बदलाव के अग्न की ओर
रुकावट नहीं ,ना कोई समस्या
वह सरपट दौड़ में है
त्रासदी सुनामी आपदा
चक्र यही कालचक्र का
बोझिल मन में
खुशनुमा माहौल भी है
और गमगीन चित्कार
रफ्तार है यही
फ़लसफ़ा भी यही
✍कमलेश निराला
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कमलेश कुमार गुप्ता