पायल से ज़ंजीर का सफ़र

पायल से ज़ंजीर का सफ़र


बढ़ती उम्र थी, अपनी रवानी पे,
बचपन बीता आयी जवानी पे,
मोहब्बत के फ़साने रचने लगी,
नाम जुड़ने लगी नई कहानी पे।

अजनबी से नज़रें मिली, प्यार हुआ,
धीरे-धीरे फिर दिल, बेक़रार हुआ।
तोहफ़े में दिया उसने पाँव में पायल,
इस तरह मोहब्बत का इज़हार हुआ।

छुप-छुप के मिलना रास आने लगा,
वो अजनबी, महबूब बन सताने लगा,
दुल्हन बनूँगी एक दिन मैं उसकी,
हसीन ख़्वाब वो दिन में दिखाने लगा।

माँ-बाप की पाबंदियों से चिढ़ने लगी,
छुप कर अपने महबूब से मिलने लगी,
घर की इज़्ज़त को रख कहीं ताक पर,
संग उसके शहर की ओर चलने लगी।

शादी की बात पे अब वो कतराने लगा
हर रोज़ नया दाम वो मेरा लगाने लगा,
बेच दिया मुझे अय्याशों की बस्ती में,
मोहब्बत को तिजारत वो बताने लगा।

डर नहीं लगता अब किसी अंजाम से,
नफ़रत होने लगी , मोहब्बत के नाम से,
पायल के नाम पे , ज़ंजीर पहना दिया,
*ज़िन्दगी की महफ़िल, सजती है शाम से।*
*ज़िन्दगी की महफ़िल, सजती है शाम से।*



*©Nilofar Farooqui Tauseef ✍️*
*Fb, IG-writernilofar*

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