कामनाऐं हजार पाले
मिला आम आदमी ।
किन्तु " जेब " से खाली
मिला आम - आदमी।।
"प्यार" के किस्से हजार
औरों के सुनाए।
पर अपनी मोहब्बत सबसे
छिपाता मिला आम- आदमी।।
सड़कें, पुल, इमारतें सब में
उसका ही खून है।
पर उन पर मूर्तियां ,औरौ की
लगाता मिला आम- आदमी।।
उसके " दुख- दर्द " पर लिख,
लेखक, कवि, कथाकार हो गये
"दुख-दर्द" सारा झेल कर भी मुस्कराता मिला आम- आदमी।।
किरदार पर उसके लिख
कुछ लोग तो कुबेर हो गये।
पर खनकती दुनिया में
खाली हाथ मिलाआम-आदमी"।।
जिस " संस्कृति " पर देश को
अब भी नाज है।
अपने सर्वस्व त्याग से
उसे बचाता मिला आम- आदमी।।
आज समृद्धि के जो
" हिमालय " हो गये।
उनकी तलहटी में कराहता
मिला आम- आदमी ।।
अमीरों के जीवन की
" इज्ज़त" बचाने की खातिर
खुद अपनी इज्जत
लुटाता मिला आम- आदमी।।
नाम जप कर उसका,कुछ
सत्ता पर काबिज हो गये।
" जागते रहो" की आवाज
लगाता मिला आम आदमी।।
शोषकों के राक्षसी अट्टहास से
हैं गुंजित सभी दिशाऐं।
पर अपनी सिसकियों को भी
दबाता मिला आम- आदमी ।।
" वेताल" उसके कंधो पर
हरदम सवार है?
विक्रम बन हमेशा,उसे
ढोता मिला आम- आदमी।।
हर बार ठगा " खास " ने
इस आम को "अभय"।
क्यों " खास " का तलबगार
मिला आम-आदमी ।।
रचनाकार कवि :
राज किशोर वाजपेयी"अभय "
ग्वालियर
मोबाइल :9425003616
Tags:
कविता