चांद की चोरी


       चांद की चोरी

        किरण चाहे सूर्य की हो या आशा की अंधकार तो मिटा ही देती है ।मैं रोज ही सवेरे सवेरे किरण का आनंद लेने निकल पड़ता वर्जिश भी हो जाती और दिन भर के श्रम के लिए ऊर्जा भी मिल जाती है।
        यह क्या कुछ दिनों से किरण के दर्शन ही नहीं ।इस रिमझिम बारिश में हम तो छाता लेकर निकल पड़ते हैं सुबह- शाम इस आशा में चक्कर लगा लेते हैं की किरण हमें छू लेगी तो ऊर्जा का संचार हो जाएगा परंतु बारिश के पहले भी तो 4 दिन सुबह किरण के दर्शन नहीं हुए सोचा उमस से पसीने में भीग लोप हो गई होंगी जैसे किरण चांद को हर लेती है,चुरा लेती है।
       अब तो यह अति हो गई करीब 1 माह बाद जब चौबारे पर किरण आई हल्के से मुस्कुराई मानो हमारी धड़कन ने कहा-' किरण आ गई अब तो मुस्कुरा ले।'
       उसका नाम किरण है यह मुझे बैंक की विजिट में उसके टेबल पर रखे नेम प्लेट से पता था ।कुछ भी तो नहीं कह सकता था की किरण ने चांद को छुपाया या चांद ने चुभती नजरों से खुद को बचाया। पर सूर्य की किरणों ने और मानसून ने चांद को चुराया तो था।

नरेंद्र परिहार  नागपुर

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