सरकारी कर्मचारियों की बुढ़ापे की लाठी..
(पुरानी पेंशन-हक हमारा)
मेरे हक को बेशक हड़प तो रहे हो.
तड़प हम रहे तो तड़क क्यों रहे हो?
तुम्हारे लिए तो पुरानी है पेंशन,
लिया मांग हमने, भड़क क्यों रहे हो?
था तुमने कहा, "राजनीति है सेवा",
अकेले ही मेवा गटक क्यों रहे हो?
जो देना है दो, सारी सौगात कुल को,
वो अंधों! मेरा हक झटक क्यों रहे हो?
लिया छीन हमसे बुढ़ापे की लाठी
किया बेसहारा मटक क्यों रहे हो?
चलो तुम भी छोड़ो जो अपनी तो जानें,
अभी थूक अपना सटक क्यों रहे हो?
दिया वोट हमने, बने आप आका,
युं पाकरके सत्ता सनक क्यों रहे हो?
मेरी आवाज सुनो..
हरि नाथ शुक्ल हरि
सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश
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कविता