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नशा मुक्त अपना समाज हो।
इस भारत में राम राज हो।
मरे कोई न दारू पीकर,
रहें नहीं होंठों को सीकर,
इतना अच्छा समय आज हो।
नशा मुक्त अपना समाज हो।
नशा है दुश्मन मानवता का,
बने दास फिर दानवताका,
खुशियों का फिर साथ साज हो।
नशा मुक्त अपना समाज हो।
नशा से होती है दुर्घटना।
बिगड़े जिससे मानव रचना।
नशा मुक्त से स्वच्छ काज हो।
इस भारत में राम राज हो।
नशा असमय मौत दिलाता।
लहर शोक की घर में लाता।
नशा मुक्त अपना समाज हो।
भारत में फिर राम राज हो।
*बृंदावन राय सरल सागर एमपी*
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कविता