अश्क हमारे हुए समन्दर।
इतने ग़म के झरने अंदर।
सबको लगते सहज सरल हम
लेकिन पीते रोज गरल हम,
उठते मन में तेज ववन्डर।
अश्क हमारे हुए समन्दर।
किसको अपना दर्द सुनाएं,
गूंगी-बहरी हुईं हवाएं,
संकट उभरे बनकर लश्कर।
अश्क हमारे हुए समन्दर।
एक हटाओ दस आ जाते,
दुश्मन जैसे बहुत बताते,
नित आते संताप लिपटकर।
अश्क हमारे हुए समन्दर।
ग़म की एक किताब हुए हम,
एक शेर ग़म का लेता दम,
दुख से हारे आज कलन्दर।
इतने ग़म के झरने अंदर।
*, बृंदावन राय सरल सागर एमपी मोबाइल नंबर 7869218525*
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कविता