आसमा का चांद हो तुम,
दिल का हर अरमान हो तुम
मेरी हर छवि तुम बिन
जैसे कोई अधूरापन!
सिसक रहा है मेरा " मन",
जैसे कोई हो चुभन
मेरी हर छवि तुम बिन
जैसे कोई अधूरापन......
मधुरम सी मुस्कान मेरी तुम
मेरा हर श्रंगार भी तुम
मेरी हर छवि तुम बिन
जैसे कोई अधूरापन........
राग के संग रागिनी
चांद के संग चांदनी
हे प्रियतम तुम आन मिलो
न भाए अब यह " अधूरापन"......
प्रतिमा दुबे ( स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
Tags:
कविता