सफल होती जिंदगी भी बेहिसाब लगती है!
मेरी मेहनत लोगों को जादुई चिराग़ लगती है।।
थक हार के जब भी कभी मैं बैठ जाती हूं,
सोचती हूं फिर में खुद को अकेला ही पाती हूं ।।
एक दिन मैं अपने मन को बड़ा किया नही जाता ,
छोटे छोटे पहलुओं से मिलाकर जिया नहीं जाता ।।
काश सच मैं कोई जादुई चिराग़ मेरे पास भी होता
अब छुट्टी लेकर इंतमिनान से घर बैठा नही जाता ।।
की लम्हे छोटे छोटे से है और काम बहुत है मुझे
किसी एक के हालत को देखकर सोचा नहीं जाता ।।
जादुई चिराग़ होता तो मांग लेती उससे सबकी खुशी,
किसी एक की खुशी पर मुझसे खुश रहा नही जाता ।।
मेरे पहलू मैं बैठकर देखोगे तो पाओगे मुझे तुम इस कदर,
तुम्हारी खुशी मैं खुश हूं मुझे अपने लिए जीना नहीं आता ।।
नायाब कोई जादुई चिराग़ की तरह अब और मुझसे,
वक्त की रेत पर अब चिराग जैसे फिसला नही जाता ।।
प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Tags:
कविता