त्रिकाल दर्शी कौन यहां, जो विगतागत को जानें?
वर्तमान को मिथ्या कहकर, लगे हमें भरमाने।
वेद, पुराण, शास्त्र समक्ष में, वृथा कहे विज्ञान।
भेदभाव साम्राज्य व्याप्त है, घट घट में भगवान?
पूजा का स्थल है लेकिन, पैसों पर है ध्यान।
श्रद्धालु सोहे पूजक को, जब वह करता दान!
तर्क वितर्क मना है, पूजा श्रद्धा का है काम।
भक्ति भाव से नमन दंडवत, हे कृपालु श्रीराम!
सुख दुःख दोनों, धूप छांव हैं, नश्वर है संसार।
जीवन मरण सदा सु निश्चित, सदा रहे सुविचार।
अपने हित जैसा हम चाहें, औरों की भी चाह।
सबके साथ समान रूप से, जीवन का निर्वाह।
** स्वरचित एवम् मौलिक
पद्म मुख पंडा,
ग्राम महा पल्ली जिला रायगढ़ छत्तीस गढ़
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कविता