पतंग हूँ मैं
उड़ रही इधर उधर हवा में
तेरी चाहत की पतंग हूं मैं ,
मांजा जोड़ रखा है प्यार का
तेरी हाथों की थिरकती हुईं
उंगलियों के इशारों के संग
आसमान में दौड़ रही हूं मैं।
पतंग हूं में ....................
काट दी जाऊंगी जो तुमने
ध्यान लगाया कही अपना
आसमान में मुझे छोड़कर
किसी और की हो जाऊंगी
तेरे मांझे की डोर तोड़कर
तेरे भरोसे पर टिकी हूं में।
पतंग हूं में....................
रोज रोज हमसफर बदला
नही जाता जैसे जीवन के
इस सफर में ए हमसफ़र मेरे ,
हा तेरी ही पसंद हूं मैं ,इसीलिए
तेरी हाथों की लकीरों मैं
नाम लिखा है मेरा भी तो ।
पतंग हूं मैं....................
उड़ रही हूं तेरे ही भरोसे पर
हवा के साथ हूं आसमान में
तेरी इशारे पर उतर आऊंगी
जमीन पर में तेरी हो जाऊंगी
तेरी चाहत है , जो उड़ रही हूं
तेरे माझे की डोर से बंधी हूं में।
पतंग हूं में ....................
प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका )
मध्य प्रदेश ग्वालियर
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कविता