आगे कुर्सी पीछे कुर्सी देख तमाशा कुर्सी का ।
आगे फुर्ती पीछे फुर्ती देख तमाशा फुर्ती का ।
कब दिल बदले कब मन बदले देख तमाशा फुर्ती का ।
आगे कुर्सी पीछे कुर्सी देख तमाशा अब कुर्सी का ।
दल-बदल के खैल में माहिर जनता भेड़ बन जाती है ।
मतदान की खातिर गधे को बाप बनाएं यह मजा कुर्सी का ।।
हर दीन ईमान सब फीका है मजा तो केवल कुर्सी का ।
दल-बदल है खेल निराला देख तमाशा फुर्ती का ।।
देखा जब राजनीति का हाल जाना हाल कुर्सी का ।
पलक झपकते खेल करते निराले देख तमाशा फुर्ती का ।
तरकश में है तीर विषैले देख तमाशा तरकश का ।
राजनीति की बाजी गरी में देख तमाशा अब सर्कस का ।।
कुर्सी है भाई कुर्सी है देख तमाशा अब तो कुर्सी का ।
बिन कुर्सी जीवन सूना है देख तमाशा कुर्सी का ।
बसंती चोला पहने नेताओं की आज चुस्ती का ।
रंग बिरंगा मौसम सुहाना इन नेताओ की कुस्ती का ।।
आगे कुर्सी पीछे कुर्सी देख तमाशा अब तो कुर्सी का ।
दीन ईमान सब फीका है देख तमाशा कुर्सी का ।।
जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम
चन्द्र शेखर शर्मा मार्कंडेय जनपद अमरोहा उत्तर प्रदेश
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कविता