ना वो मेरी जान थी ना कोई पहचान थी।
अचानक एक पैग़ाम आया।
तन्हा बैठे थे हम हमें होश आया।
पैग़ाम पर जब नज़रें घूमाई।
यूं समझो चमन मे बहार आ गई।
उनसे मिलने को बेताब हैं ये दिल।
उनसे बातें करने को तड़प रहा हैं दिल।
पता नहीं वो मिलन की घड़ी कब पास होगी।
जब रू-ब-रू वो हमारे साथ होगी।
पता नहीं वो मंज़र कैसा होगा।
जब हमारा उनसे दीदार होगा।
तन्हा बैठे थे हम तब ये पैग़ाम आया।
ये कैसे कैसे खयाल आ रहें हैं मन में।
के बात ही कुछ ऐसी थी उस पैग़ाम में।
क्या इसी का नाम मुहब्बत हैं ?
दिल अपना होके भी बेगाना हो जाता हैं।
इस भरी दुनिया की भरी महफिल में।
"बाबू"अपने आप को भी तन्हा महसूस करता हैं।
तन्हा बैठे थे हम तब ये पैग़ाम आया।
✍️बाबू भंडारी "हमनवा" बल्लारपुर (महाराष्ट्र)
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