सरस सलिला मां गंगा को समर्पित..
(त्रिभगी छंद)
जय मां जग जननी, सब सुख करनी,
तन मन तरणी हे माई
सब जन समुदाई, करत बड़ाई,
जोरि पाणि अस्तुति गाई,
निकलीं हिमकर से, कल कल स्वर से,
जन मज्जत तव तट जाई,
हे मां जग पावनि! पाप नशावनि,
देहु भगति अति सुखदाई।
तप कीन भगीरथ, सुफल मनोरथ,
धरा धाम जननी धाई,
शिव जटा समाई, हरि गुण गाई,
हर-हर हर-हर हहराई,
शिव मुक्त किए लट, जट उतरी झट,
मुनि जन गण मन हरषाई,
जय जय मां गंगे, विमल तरंगे,
त्रिभुवन तारण तुम आई।
सादर, साभार..
हरि नाथ शुक्ल 'हरि'
सुल्तानपुर उ. प्र.
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कविता