बड़ा बेआबरू होकर , वो मन की बात करता है।
नहाकर खून से वो , आचमन की बात करता है।।
खिलौनों की तरह वो , खेलता है भावनाओं से।
भरोसा तोड़कर , निष्ठा - लगन की बात करता है।।
निवाला छीन कर तड़पा रहा है , बेचने वाला।
अक्सर मित्र और भाई -बहन , की बात करता है।।
दिखाया स्वप्न दूनी आय , करने का भरोसा था।
कुचलता है किसानों को , सहन की बात करता है।।
वो नफरत और घृणा का , नया संसार रचता है।
इशारों में सदा उनके , जलन की बात करता है।।
अवसर छीनकर हाथों से , धनिकों को सुखी करता।
झोपड़ियों को जलाकर , वो गगन की बात करता है।।
दुःखी है न्याय की देवी , दुःखी है कलम का साथी।
दुःखी जन-मन यहां फिर भी,नमन की बात करता है।।..."अनंग "
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कविता