मेरे प्यारे ऋतुराज की अभिनन्दन करे चमन।
हो गया है गाँव गाँव जबसे बसंत का आगमन ।
रूखे सुखे डाल-डाल,नये कोपले आने लगे।
वन उपवन उन्मादित, जैसे यौवना छाने लगे।
रंग बिरंगी तितलियाँ ,झुंड में गुनगुनाने लगे।
भँवरा फूल-फूल से, मकरंद मधु लाने लगे।
खिलखिलाकर झूमते ,ये खेत खलिहान है ।
आ गया हूँ मैं, ये बसंत का आह्वान है।
बाग-बगियों के पेड़ो संग नाचते-गाते पवन।
हो गया है गाँव-गाँव जबसे बसंत का आगमन ।
सिमर के डाल-डाल, फुलो की कतार है।
कोयल की राग से ,बाग गुलजार है।।
सरसों के फूल जैसे ,पीले-पीले श्रृंगार है।
पुष्प से सुसज्जित, ऋतुराज का त्योहार है ।
सतरंगी फूलों से जैसे सज चुके, हर द्वार है।
यह अलौकिक आलिंगन,अद्भुत बसंत बहार है।
कुदरत के दिव्य झलक को है बारम्बार नमन।
हो गया गाँव-गाँव जबसे बसंत का आगमन।
फूल-फलवति हो पेड़, नाचते गाते है शान से।
हर्षित होता तन-मन देख, प्रित के विधान से।
ऋतुपति के अलौकिक, प्रेममयी रूझान से।
है घायल करते रितुप्रिया को, अचूक संधान से।
पीड़ित जो प्यासी पलकें उलझे विरह की छण-छण से
उनकी पीड़ा हर लेते है, वो अपने दिव्य आलिंगन से।
खिल उठे मेरे पोर-पोर आतुर है जैसे अंतर्मन ।
हो गया है गाँव-गाँव जबसे बसंत का आगमन।
जोश में खिले है फूल, गेंदे और गुलाब की।
पुरे होने के आये वक्त ,इनके भी ख्वाब की।
आखिर विरह कब तक सहेंगे, महताब की।
आतुरता है इनको भी, बसंत के खिताब की।
तड़प रहे थे जो भी मन, विरह के त्राण से।
आज वो प्रफुल्लित है, बसंत के विहान से ।
फैले हुए है आज जैसे चहुँओर ही अमन।
हो गया है गाँव-गाँव जबसे बसंत का आगमन।
पूनम यादव
वैशाली बिहार से
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गीत