भीषण वीरानी

भीषण वीरानी

घर घर की है , एक कहानी।
रूठी  दादी  , खुश है नानी।।

महंगाई   ने  मार  दिया  है।
सता रही है बिजली पानी।।

मांगो कुछ भी नही मिलेगा।
फिर भी सब बनते हैं दानी।।

भाव  बहाकर  ठगने वाले।
रोज -रोज करते बेईमानी।।

जो छलते हैं अपनों को ही।
करते  हैं  बिल्कुल नादानी।।

घर  के अंदर बिल्ली मौसी।
बाहर  बैठी  कुतिया कानी।।

बढ़ते  देखा  दुःखी पड़ोसी।
 क्या कहना ये बात पुरानी।।

 तरस  रहे  हैं सभी प्यार को।
 तने हुए फिर भी अभिमानी।।

छोटी  बात  बड़े झगड़े हैं।
घुल जाती है नई जवानी।।

सुख को है परहेज महल से।
कितनी प्यारी अपनी छानी।।

सब खुद में मशगूल हो गए।
छाई   है   भीषण   वीरानी।।

इज्जत दो अपनाओ सबको।
ये  दुनिया  है  आनी  जानी।।...*"अनंग"*

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