आज़ादी की नई परिभाषा

आज़ादी की नई परिभाषा

आज 15 अगस्त है। झंडा फहराएगा, राष्ट्रगान गूंजेगा, और लाखों दिलों में देशभक्ति की लहर दौड़ पड़ेगी। लेकिन 78 साल बाद आज़ादी की असली परिभाषा क्या है?

हमारे दादा-दादी के लिए आज़ादी का मतलब था — विदेशी शासन से मुक्ति। हमारे माता-पिता के लिए — गरीबी, अशिक्षा और पिछड़ेपन से लड़ाई।और हमारे लिए आज़ादी का मतलब है —
फ्री इंटरनेट से लेकर फ्री सोच तक,
जात-पात और भेदभाव से आज़ादी,
वैश्विक मंच पर खुद को साबित करने की आज़ादी।

आज का भारत डिजिटल इंडिया है — एआई, स्टार्टअप, स्पेस टेक्नॉलॉजी, और ग्लोबल मार्केट में नई पहचान। लेकिन साथ ही ये सच भी है कि आज़ादी सिर्फ़ टैंकों और बंदूकों से नहीं बचती — इसे बचाने के लिए ज़रूरी है सही सोच, ईमानदार नेतृत्व और जागरूक नागरिक।

अगर हम सोशल मीडिया पर अफवाहों के गुलाम हैं, तो क्या ये सच में आज़ादी है?

अगर महिलाएं सड़कों पर सुरक्षित महसूस नहीं करतीं, तो क्या ये पूरी आज़ादी है?

अगर किसान का बेटा पढ़ाई छोड़कर मज़दूरी करने को मजबूर है, तो क्या हम सफल हैं?

आज ज़रूरत है कि हम “फ्रीडम” को सिर्फ़ सरहदों की रक्षा नहीं, बल्कि सोच, समाज और अवसरों की समानता तक ले जाएं। अगले 25 साल — यानी भारत@100 — में हमें एक ऐसा देश बनाना है जहाँ:

हर बच्चा सपनों के लिए पढ़े, मजबूरी के लिए नहीं।

हर महिला बिना डर के घर लौटे।

हर नागरिक वोट देते वक्त नेता नहीं, नीति चुने।

और हम खुद को “विकसित” कहने में हिचकिचाएं नहीं।

15 अगस्त सिर्फ़ जश्न नहीं, ये रिमाइंडर है —
कि हमारे पूर्वजों ने हमें ये मौका दिया, और हमारी ज़िम्मेदारी है इसे आगे बढ़ाने की।
आज का तिरंगा हमें सिर्फ़ अतीत का गर्व नहीं देता, बल्कि आने वाले कल की चुनौती भी सौंपता है।

तो चलिए, इस 15 अगस्त पर हम कसम खाएं —
कि अगली पीढ़ी को हम सिर्फ़ आज़ाद नहीं, बल्कि बेहतर भारत सौंपेंगे। 

सुशी सक्सेना इंदौर मध्यप्रदेश

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