सुनहरी शाम

                      सुनहरी शाम 
चले आओ कि फिर वैसी,सुनहरी शाम हो जाए। 
तुम्हारे साथ जुड़ कर के , मेरा भी नाम हो जाए।।
बहुत दुश्वारियों में जी रहा हूं , जिंदगी में भी। 
अगर तुम चाह दो मन से,तो मेरा काम हो जाए।।
बना लो तुम मुझे अपना ,अकेले रह न जाऊं मैं। 
समर्पण कर दूं मैं जीवन , मुझे आराम हो जाए।। 
किसी का है नहीं कोई,मिलावट की ये दुनिया है।
जहां ऐसी हमें दे दो कि ,अल्ला- राम हो जाए।।
नगर में बस गए जबसे ,दीवारें कैद कर डाली।
सभी बेचैनियों से अब यहां , विराम हो जाए।।
दीवारें कान बनकर सुन रहीं ,चुगली करोगे तुम। 
बच्चे हम हर बुराई से , भले बदनाम हो जाएं।।
मुझे साथी बना लो प्रेम की,गलियों में खो जाएं।
भले ही जिंदगी के रास्ते , सब जाम हो जाएं।।
किसी के काम आ जाना,सफलता है जी जीवन का।
जुबां पर हर किसी के बस , यही पैगाम हो जाए।।..."अनंग "

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