शराफत

 शराफत

लियाकत बेचने वालों
शराफत भी बेच डाला
रफाकत बेवफा से कर ली
हिमाकत को गले लगाया

मयस्सर भी ना हुई मंजिल
तिजारत घर जो है लाया
हिकायत हो गई झूठी
इबादत भूल है आया

हिकारत को गले लगाना
पछतावा नही पाया
लियाकत थी तेरी दौलत
उसे जेहन से भगाया

अदावत गैरों से कर ली
नदामत में सर झुकाया
रफाकत सज्जन से ना करके
हिमाकत तुमने है सजाया

मुरव्वत खो गई जग में
गैरत तुम्हें क्यूॅ न आया
हैरत हो रही सबको
खुद्दारियत कैसे भुलाया

उदय किशोर साह
मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार
9546115088

Please Select Embedded Mode To Show The Comment System.*

Previous Post Next Post

Contact Form