25/06/2020
लेख:-
"चीन का उन्माद और विस्तारवादी विचाधारा"
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चीन एशियाई महाद्वीप के पूर्व में स्थित है। चीन की सभ्यता व संस्कृति छठी शताब्दी से भी पुरानी है। गृहयुद्ध के कारण चीन दो हिस्सों मे बंट गया है-
1. जनवादी गणराज्य चीन:- इसमें चीन का बहुतायत भाग आता है।
2. चीनी गणराज्य:- यह मुख्य भूमि से दूर ताईवान सहित कुछ अन्य द्वीपों में बना देश है।
आज पूरा विश्व कोरोना महामारी जैसे संकट से जूझ रहा है। कोरोना काल में भारत ने करीब 100 देशों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा मुफ्त देकर जहाँ संकट में उदारता का परिचय दिया है। आज भारत की छवि सेवाभावी के रूप में उभरकर सामने आई है। भारत चीनी उत्पादों का बड़ा बाज़ार है लेकिन इस संकट काल में भारत ने मज़बूत इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए आत्मनिर्भर भारत बनने का नारा लगाकर चीन के होश उड़ा दिए हैं। इधर दो बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने चीन से व्यापार समेटकर भारत मे पैर जमाना शुरू कर दिया है। चीन को अचानक इतने बड़े झटके की आशा नहीं थी इसलिए वह चीनी सीमा पर उन्मादी विवाद उत्पन्न कर भारत की स्वावलंबी पहल को रूकना चाहता है।
भारत और चीन के बीच कमांडर स्तर की पाँच बैठकें भी हुई, परन्तु कोई परिणाम नहीं निकला।
गालवन घाटी लद्दाख व अक्साई चीन के बीच स्थित है। यही विवादित स्थल बना हुआ है। चीन दावा कर रहा है कि गालवन घाटी पर चीन का अधिकार है जबकि भारत यहाँ सामरिक ठिकाने बनाकर नियंत्रण रेखा पर एक तरफा बदलाव लाने की कोशिश कर रहा है।
वास्तव में चीन सोच रहा है कि इस समय भारत कोरोना महामारी के चलते, उससे छुटकारे के लिए संघर्षरत है , तो मौका अच्छा है भारत को दबाया जा सकता है।
इतने वर्षों से चीन भारत का मित्र बनने का दावा तो करता रहा परन्तु भारत के प्रति कभी उदार नहीं रहा। 1962 का भारत चीन युद्ध इसी का परिणाम है।
चीन भारत को एक प्रतिद्वंद्वी की तरह देख रहा है। भारत अपने कदम बड़ी तेज़ी से विकास की ओर बढ़ा रहा है और विश्व की दृष्टि भारत पर ही टिकी है। वहीं दूसरी ओर अपने गलत मंशा के कारण चीन धीरे -धीरे सबसे अपने संम्बंध समाप्त करता जा रहा है। चीन की नीतियों के संदर्भ मे देखे तो चीन ने हमेशा ही आक्रामक विस्तारवादी विदेश नीति को केन्द्र में रखा है। चीन एक शातिर देश है निश्चित ही तिब्बत पर कब्जा़ करने का इरादा भारत को ही केन्द्रित करके पूर्ण होगा। इसके पीछे चीन का ऐसा सोचना है कि एक तरफ तो भारतीय सीमा के निकट पहुंचने में सफलता प्राप्त होगी और पाकिस्तान जैसे मित्र का पड़ोसी भी बनने का सौभाग्य। अर्थात पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) अर्थात पीओके से ही चीन की सीमा लगती है। जिसको लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद है।
दक्षिण चीन सागर के संदर्भ में चीन की नीति से पूरा विश्व परिचित है। अपनी विस्तारवादी नीति के तहत चीन दक्षिण चीन सागर पर अपने एकाधिकार का दावा करता है।
भारत, भूटान, तिब्बत की सीमा पर देखें तो चीन द्वारा भूटान के भू भाग को हड़पने की नीयत के कारण सीमा पर तनाव जारी है।
वर्तमान में जिस तरह से चीन अंतरराष्ट्रीय राजनीति में व्यवहार कर रहा है उससे निश्चित ही काफी देश विरोध मे खड़े नज़र आयेगें। क्योंकि चीन को केवल अपना लाभ दिख रहा है उसके लाभ के कारण चाहे किसी अन्य देश पर कितना संकट आ जाए उसे कोई चिंता नहीं वह एक स्वार्थी देश है जो केवल अपना भला करने मे लगा है।
चीन ने हांगकांग को राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के दायरे में लाने के लिए कानून में संशोधन विधेयक पेश किया है। यदि यह पारित हो जाता है तो हांगकांग मे चीन विरोधी गतिविधियों को रोकने के साथ ही विदेशी हस्तक्षेप पर भी रोक लग जायेगी। इसके विरोध में अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा भी सामने आकर खड़े हो गए हैं। इसी प्रकार चीन की बुरी दृष्टि ताइवान पर भी है। चीन को किसी की भी बात समझ में नहीं आ रहीं या यह भी कहा जा सकता है कि
वह कुछ भी समझना नहीं चाहता इसके अतिरिक्त वह विस्तारवादी नीति पर भी विराम नहीं लगाना चाहता।
धन्यवाद
शाहाना परवीन....✍️
पटियाला पंजाब
लेख:-
"चीन का उन्माद और विस्तारवादी विचाधारा"
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चीन एशियाई महाद्वीप के पूर्व में स्थित है। चीन की सभ्यता व संस्कृति छठी शताब्दी से भी पुरानी है। गृहयुद्ध के कारण चीन दो हिस्सों मे बंट गया है-
1. जनवादी गणराज्य चीन:- इसमें चीन का बहुतायत भाग आता है।
2. चीनी गणराज्य:- यह मुख्य भूमि से दूर ताईवान सहित कुछ अन्य द्वीपों में बना देश है।
आज पूरा विश्व कोरोना महामारी जैसे संकट से जूझ रहा है। कोरोना काल में भारत ने करीब 100 देशों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा मुफ्त देकर जहाँ संकट में उदारता का परिचय दिया है। आज भारत की छवि सेवाभावी के रूप में उभरकर सामने आई है। भारत चीनी उत्पादों का बड़ा बाज़ार है लेकिन इस संकट काल में भारत ने मज़बूत इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए आत्मनिर्भर भारत बनने का नारा लगाकर चीन के होश उड़ा दिए हैं। इधर दो बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने चीन से व्यापार समेटकर भारत मे पैर जमाना शुरू कर दिया है। चीन को अचानक इतने बड़े झटके की आशा नहीं थी इसलिए वह चीनी सीमा पर उन्मादी विवाद उत्पन्न कर भारत की स्वावलंबी पहल को रूकना चाहता है।
भारत और चीन के बीच कमांडर स्तर की पाँच बैठकें भी हुई, परन्तु कोई परिणाम नहीं निकला।
गालवन घाटी लद्दाख व अक्साई चीन के बीच स्थित है। यही विवादित स्थल बना हुआ है। चीन दावा कर रहा है कि गालवन घाटी पर चीन का अधिकार है जबकि भारत यहाँ सामरिक ठिकाने बनाकर नियंत्रण रेखा पर एक तरफा बदलाव लाने की कोशिश कर रहा है।
वास्तव में चीन सोच रहा है कि इस समय भारत कोरोना महामारी के चलते, उससे छुटकारे के लिए संघर्षरत है , तो मौका अच्छा है भारत को दबाया जा सकता है।
इतने वर्षों से चीन भारत का मित्र बनने का दावा तो करता रहा परन्तु भारत के प्रति कभी उदार नहीं रहा। 1962 का भारत चीन युद्ध इसी का परिणाम है।
चीन भारत को एक प्रतिद्वंद्वी की तरह देख रहा है। भारत अपने कदम बड़ी तेज़ी से विकास की ओर बढ़ा रहा है और विश्व की दृष्टि भारत पर ही टिकी है। वहीं दूसरी ओर अपने गलत मंशा के कारण चीन धीरे -धीरे सबसे अपने संम्बंध समाप्त करता जा रहा है। चीन की नीतियों के संदर्भ मे देखे तो चीन ने हमेशा ही आक्रामक विस्तारवादी विदेश नीति को केन्द्र में रखा है। चीन एक शातिर देश है निश्चित ही तिब्बत पर कब्जा़ करने का इरादा भारत को ही केन्द्रित करके पूर्ण होगा। इसके पीछे चीन का ऐसा सोचना है कि एक तरफ तो भारतीय सीमा के निकट पहुंचने में सफलता प्राप्त होगी और पाकिस्तान जैसे मित्र का पड़ोसी भी बनने का सौभाग्य। अर्थात पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) अर्थात पीओके से ही चीन की सीमा लगती है। जिसको लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद है।
दक्षिण चीन सागर के संदर्भ में चीन की नीति से पूरा विश्व परिचित है। अपनी विस्तारवादी नीति के तहत चीन दक्षिण चीन सागर पर अपने एकाधिकार का दावा करता है।
भारत, भूटान, तिब्बत की सीमा पर देखें तो चीन द्वारा भूटान के भू भाग को हड़पने की नीयत के कारण सीमा पर तनाव जारी है।
वर्तमान में जिस तरह से चीन अंतरराष्ट्रीय राजनीति में व्यवहार कर रहा है उससे निश्चित ही काफी देश विरोध मे खड़े नज़र आयेगें। क्योंकि चीन को केवल अपना लाभ दिख रहा है उसके लाभ के कारण चाहे किसी अन्य देश पर कितना संकट आ जाए उसे कोई चिंता नहीं वह एक स्वार्थी देश है जो केवल अपना भला करने मे लगा है।
चीन ने हांगकांग को राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के दायरे में लाने के लिए कानून में संशोधन विधेयक पेश किया है। यदि यह पारित हो जाता है तो हांगकांग मे चीन विरोधी गतिविधियों को रोकने के साथ ही विदेशी हस्तक्षेप पर भी रोक लग जायेगी। इसके विरोध में अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा भी सामने आकर खड़े हो गए हैं। इसी प्रकार चीन की बुरी दृष्टि ताइवान पर भी है। चीन को किसी की भी बात समझ में नहीं आ रहीं या यह भी कहा जा सकता है कि
वह कुछ भी समझना नहीं चाहता इसके अतिरिक्त वह विस्तारवादी नीति पर भी विराम नहीं लगाना चाहता।
धन्यवाद
शाहाना परवीन....✍️
पटियाला पंजाब
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