अंश
दीनानाथ रोज़ की तरह अपने काम पर जा रहे थे अचानक उनकी साइकिल की चेन टूट जाती है इस कारण से गिर जाते उनके सिर पर चोट आती है पर वह धयान नही देते अपने काम पर चले जाते है । वह एक कम्पनी के मेनेजर है जब पहुँचते है सब लोग पूछते हे इतनी चोट लगने के बाद भी आप काम पर आगये आपको तो दवा लेने जाना था दीनानाथ ने कहा ये तो मामूली चोट है इससे ज़्यादा तो मेरे दिल में घाव है जो कभी नही भर पायेगे इस तरह की चोट तो लगती रहती है ये तो सही हो जायेंगी पर दिल पर लगे कभी घाव नही भर पाते है ये कहकर अपने काम पर लग गये ये सब अमर देख रहा था उसने अपने साथी से पूछा दीनानाथ इतने मायूस क्यों है फिर उसके साथी देव ने बताया दीनानाथ जी पहले पी डब्लू में क्लर्क के पद पर काम करते थे उनकी ख़ुशहाल ज़िंदगी थी उनके दो बेटी और एक बेटा था बच्चों को उन्होंने ख़ूब पढ़ाया सभी बच्चे क़ाबिल बन गये दोनो बेटी की शादी बिदेश में हो गयी दोनो ख़ुश थी और बेटे की भी बहुत धूम धाम से शादी की घर में बहू आने से घर ख़ुशहाल लगने लगा दीनानाथ ने अपनी सारी पूँजी। बच्चों के परवरिश में लगा दी सोचा अब रिटायर हो गये है बेटा बहू सेवा करेंगे बेटा भी अच्छा कमाता था बहू भी सही थी ।कुछ माह बितने पर बहू ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया बहू को सास ससुर खटकने लगे दिन रात क्लेश होने लगा बेटा घर छोड़ कर चला गया सास ससुर अकेले रह गये माँ तो बेटे के ग़म में दुनिया से चली गयी पर बेटा घर नही आया बेटी भी विदेश रहती थी वो भी जल्दी घर नही आ पाती थी ।दीनानाथ घर में अकेले ही रहते बेटे ने अपने पिता को कभी मुड़कर नही देखा वो घर में अकेले ही रहते थे पहले घर में कितने लोग थे पर आज बो अकेले थे बेटे ने अपने पिता को कभी फ़ोन नही किया ।कुछ साल बाद बेटे की अपनी कम्पनी थी घाटा होने पर डूब गयी बेटा कंगाल हो गया टेंसन्न में उसको हार्ट अटेक पड़ जाने पर शरीर पर फालिश का अटेक हो गया अब वह उठ नही सकता ना बोल पाता था उसकी यह हालत देखकर बीबी छोड़ कर अपने घर चली गयी दीनानाथ का बेटा अकेला रह गया उसकी देखभाल करने बाला कोई नही था बेटे का घर भी नीलाम हो गया जब दींनानाथ को अपने बेटे के बारे में पता चला तो अपने बेटे को घर पर ले आये बेटे का इलाज कराया इलाज कराते कराते दीनानाथ के पास सारा धन ख़त्म हो चुका था इलाज के लिये पैसा कम पढ़ने लगा दी
दीनानाथ ७५ साल के हो गये थे अब पैसा कहाँ से लाते तब उनको किसी कम्पनी में मेनेजर की नोकरी मिल गयी बो ओवरटाँयम भी करते बेटे का पूरा इलाज करा रहे थे ।जब अमित को कहानी का पता चला अमित ने दीनानाथ जी से पूछा आपके बेटे ने आपके साथ येसा बरताब किया आप उसका क्यों साथ दे रहे है तब दीनानाथ जी न बड़ी सहजता से उत्तर दिया बेटा तो मेरा “अंश” है मेरे लिये वह सब कुछ है ।
नूतन सक्सेना
बदायूँ
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