सीरियल किलर

सीरियल किलर

"सिरियल किलर" फैला,
हर गली मोहल्ले।
हर ऊँचे तख्त पर,
नकाब लगाए बैठा है।
पीता खून गरीबो के,
विश्वास का जमकर।
तख्त की आड़ मे,
एक मोटी रिश्वत लेता है।
गरीब योग्य बेरोजगारी में,
मरते  तिल-तिलकर।
मोटी थैली देते जो,
रोजगार उन्ही को मिलता है।
चिकनी-चुपड़ी बातों में ,
वादे बड़े-बड़े करता है।
उल्लू सीधा होने पर,
करता खून अरमानों का।
पैसों की खतिर यहाँ,
हर कारोबार होता है।
ये सीरियल किलर तो,
जाने रोज कितनो के?
अरमानों की हत्या,
पल-पल करता है।
चाहें  शिक्षा का व्यापार,
या स्वास्थ्य सेवा के नाम पर ।
भ्र्ष्टाचार के खंजर से,
अनगिनत हत्या करता है।
भला उसी का होता, 
जिसने मोटी रिश्वत की दी थैली ।
हत्यारे का दाग लगे ना,
ना इज्जत भी हो मैली।
हर सरकारी सेवा के नामपर,
मजदूरों का लहू पीते।
सारा धन अपने खाते में,
गरीब फांसी पर चढ़ते।
दिन ब दिन सीरियल किलर,
जनसंख्या में बढ़ते।
  पाँच वर्षों के बाद,
बंजर भूमि भी लहलहाती है।
सीरियल किलर जाल बिछाते,
जनता भी फंस जाती है।
मुझें बड़ा याद आया लिखा वह शेर ,
'शौक बहराइची' साहब शायर का।
"हर साख पे उल्लू बैठा है,"
अंजामे गुलिस्ता क्या होगा।
'बर्बाद ये गुलशन खातिर',
"बस एक ही उल्लू काफी था।
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स्वरचित और मौलिक
सर्वधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय

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