विषय - "नारी अबला नहीं सबला है।"
सम्मानीय मंच को सादर नमन करते करते हुए सभी सहभागियों को नमन वंदन अभिनंदन करती हूँ।
आज गणतंत्र दिवस के अवसर आयोजन का विषय *आज की नारी अबला नहीं सबला है*। इस विषय पर अपने विचार मंच के समक्ष प्रस्तुत कर रही हूं।
गणतंत्र जहां जनता का ,जनता के द्वारा, जनता के लिए किया गया शासन ।इस जन शब्द में आधी आबादी यानी नारी भी शामिल है।जिसके लिए आज आजादी के बाद भी उसके अबला और सबला होने की बातें यदा-कदा उठती रहती हैं।
यदि हम नारी की स्थिति का अवलोकन करे तो पाते हैं कि सर्वप्रथम सर्वशक्तिमान मां जगदम्बा एवं धरती माता का चित्र हमारे मन मस्तिष्क में अनायास ही उभर कर आता है जिनके अस्तित्व से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। दोनों ही जगत के पालनहार हैं। सीता, सावित्री, अनुसुइया,रानी लक्ष्मीबाई,रानी पद्मिनी,रानी हाड़ा जैसी अनेको वीरोचित गुणों से युक्त नारियों ने घर ही नहीं राष्ट्र के गौरव को भी बढ़ाया है।
अब हम आज की बात करें तों दूसरा पहलू देखते हैं कि हमारे पुरूष प्रधान समाज में स्त्रियों को भोग की वस्तु समझा जाता है।एक ओर जहां नारी चांद छू रही है कल्पना चावला,मेरीकाम,किरण बेदी, इंदिरा गाधी, जैसे कई नाम याद आते हैं। ऐसी कई नारियां और बालिकाएं छलांग लगाने को तत्पर हैं उन्हे सिर्फ मौके की तलाश है।वे भी आगे बढ़कर आसमान की ऊंचाइयों को हासिल कर सकती हैं। लेकिन उन्हे सामाजिक मर्यादा के बंधन में बांध दिया जाता हैं क्योंकि लोलुपता दृष्टि और अनैतिक आचरणों से भी बचाना के भी है।बस फिर वह अबला शाबित हो जाती है और प्रताड़ित होती है।
कभी पति , कभी पिता,कभी पुत्र,कभी भाई,या फिर सामज के अन्य पहरेदार सभी अबला सिद्ध साबित कर देतें हैं।
*यत्र नारी पूज्यंते रमंते तत्र देवता* शास्त्रों में लिखी इस पंक्ति को भी गलत साबित करने में लगे समाज के ठेकेदारों अनुरोध करना चाहूंगी कि ये पंक्तियां बस भाषणों के लिए नहीं हैं इन्हें अपने जीवन में भी उतारें।अपनी सोच को बदलें।नारी को अबला बनाना आपकी ही सोच का परिणाम है। वह तो चारों वर्णों के कार्यो को करने में समर्थ है।शिशु के गर्भ में आने पर अपने उदर मे भरण पोषण से लेकर युवा अवस्था तक शूद्र ,ब्राम्हण,वैश्य एवं क्षत्रिय चारों वर्णो के धर्मो को निभाने वाली नारी भला अबला कैसे ???
आज वह समय बीत गया है, फिर भी कभी कभी ये पंक्तियां हमारे सामने आ जाती हैं
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी,
आंचल में है दूध आंखो में पानी।
आज मुझे इसका अर्थ बताने की आवश्यकता नहीं है।मै इन पंक्तियों को कुछ इस तरह से कहती हूं ।
नारी सबला बनकर बदलो ,तुम अपनी आशा।
लिखो तुम अपनी खुद अपनी परिभाषा।।
आंचल के दूध से सींचा है तुमने, लगाकर सीने से है पाला।
खाई सौगंध नहीं पीने दूंगी दुख का प्याला।
नहीं आने दूंगी अपनी आंखो मे भी आंसू।
सब खुद की समझ के फेर में ,एक दिन मिट जाएंगे।
सृष्टि अंत होने पर , फिर से तुम्हें बुलाएंगे।
तब पता चलती इनको ,जग में अपनी औकात।
फिर से करेगी तू इस जग में नए जीवन की शुरुआत।
तब पूंछती हूं मैं इनसे बताएं ,
क्यों ? कहें हम खुद को अबला।
जब सृष्टि की रचनाकार ही हों हम सब सबला।
अंत मे मै यही कहूंगी
उठो द्रोपदी अस्त्र उठा लो, गोविंद नहीं अब आएंगे।
अपनी आन बान की रक्षा हम खुद ही कर जाएंगे।
दो कुलों की शान और मान हमने बढ़ाया है।।
हमें अपना भी सम्मान बचाना होगा।
अब इस अबलापन से खुद सबला बनना होगा।।
उठो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, गोविंद नहीं अब आएंगे।
धन्यवाद🙏
जय हिंद,वन्देमातरम्
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