आज की नारी अबला न रही
नहीं रही अब लाचारी
आज की सबला नारी ।।
तोड़ चली रिश्तो की भरमारी
नौकरों की लगा दी बेशुमार ।।
आ गई है बहुत ही समझदारी
न रही वह लाचार और बेचारी ।।
सत्ता का स्वाद भा गया पड़ी नेताओ पर भारी ।
हर जगह छा रही हवाई जहाज़ की करती सवारी ।।
खेल के मैदानों में उतरी और करती तीरंदाज़ी
हॉकी , क्रिकेट , कुश्ती , टेनिस और मुक्केबाज़ी ।।
पढने में मर्दो को छोड़ो पीछे , अव्वल आने वाली ।
मन में हौसला और साहस और हिम्मत वाली ।।
मन में रखती सहनशीलता और धैर्य,संबल वाली ।
किसी से पीछे नही हर जगह करतब दिखानेवाली ।।
हर जगह पहूच कर दिखती अपनी जाँबाज़ी
आज न रही व अबला लाचार बेचारी ।।
अंतरिक्ष पर जा पहूंची , न रही अब वह बेचारी
लजाई के मैदानों में भी देती है भागीदारी ।।
लक्ष्मी - दुर्गा - महाकाली - अन्नपूर्णा रुपो वाली ।
घर आँगन को सजा सँवार कर रोशन करने वाली ।।
परिवार की धूरी , सब पर ममता बरसाने वाली ।
आज की नारी अबला नही सबला बन काम करने वाली ।।
तोड़ चली रिश्तो की भरमारी
नौकरों की लगा दी बेशुमार ।।
माँ - बेटी . पत्नी - बहू का किरदार निभानेवाली ।
त्याग - ममता . दया और प्यार बरसाने वाली ।।
समस्त प्रेम की परिभाषा समझाने वाली ।
करुणा का सागर शुचिता के भण्डार वाली ।।
संस्कार सभ्यता का पाठ पढा जीवन गढ़नेवाली ।
स्वाभिमान जगा सत्य की राह बताने वाली ।।
सृष्टी का कल्याण करती तुम सृजन करने वाली
न की अब अबला , लाचार बेचारी
आज की नारी बनी सबला ।
अलका पाण्डेय- मुम्बई
नहीं रही अब लाचारी
आज की सबला नारी ।।
तोड़ चली रिश्तो की भरमारी
नौकरों की लगा दी बेशुमार ।।
आ गई है बहुत ही समझदारी
न रही वह लाचार और बेचारी ।।
सत्ता का स्वाद भा गया पड़ी नेताओ पर भारी ।
हर जगह छा रही हवाई जहाज़ की करती सवारी ।।
खेल के मैदानों में उतरी और करती तीरंदाज़ी
हॉकी , क्रिकेट , कुश्ती , टेनिस और मुक्केबाज़ी ।।
पढने में मर्दो को छोड़ो पीछे , अव्वल आने वाली ।
मन में हौसला और साहस और हिम्मत वाली ।।
मन में रखती सहनशीलता और धैर्य,संबल वाली ।
किसी से पीछे नही हर जगह करतब दिखानेवाली ।।
हर जगह पहूच कर दिखती अपनी जाँबाज़ी
आज न रही व अबला लाचार बेचारी ।।
अंतरिक्ष पर जा पहूंची , न रही अब वह बेचारी
लजाई के मैदानों में भी देती है भागीदारी ।।
लक्ष्मी - दुर्गा - महाकाली - अन्नपूर्णा रुपो वाली ।
घर आँगन को सजा सँवार कर रोशन करने वाली ।।
परिवार की धूरी , सब पर ममता बरसाने वाली ।
आज की नारी अबला नही सबला बन काम करने वाली ।।
तोड़ चली रिश्तो की भरमारी
नौकरों की लगा दी बेशुमार ।।
माँ - बेटी . पत्नी - बहू का किरदार निभानेवाली ।
त्याग - ममता . दया और प्यार बरसाने वाली ।।
समस्त प्रेम की परिभाषा समझाने वाली ।
करुणा का सागर शुचिता के भण्डार वाली ।।
संस्कार सभ्यता का पाठ पढा जीवन गढ़नेवाली ।
स्वाभिमान जगा सत्य की राह बताने वाली ।।
सृष्टी का कल्याण करती तुम सृजन करने वाली
न की अब अबला , लाचार बेचारी
आज की नारी बनी सबला ।
अलका पाण्डेय- मुम्बई
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कविता