जीने का जिंदगी हर हक मुझे चाहिए
भेद कैसा मुझमें तुममें
जब धड़कने है एक सी
क्यों मेहनत मेरी बेवजह है
क्यों अरमान मेरा सिर्फ़ एक ख्वाब है
क्यों योग्यता मेरी शूल बनकर चुभ गई
क्यों अभिव्यक्ति मेरी सबको खल गई
है वजूद मेरा भी
क्यों बताऊ बार बार
चली हूँ मैं भी संग तेरे अंतरिक्ष के
पार
महिला किसान मैं भी
उड़ा रही हूं यान भी
नीति हो अब राज की या समाज की,मैं भी रंग ला रही हूं
भूले क्यों संविधान निर्माण में भी
15 महिलाओं का हाथ था
प्राचीन भारत मे भी महिलाओं को हर अधिकार था
हराने का मुझे शौक़ नही
बस जीतने का जुनून है
मैं खुद में ही विराट हूँ
देवी के नौ स्वरूप हूँ
गढ़कर नई परिभाषा अपनी उड़ान की
चली हूँ आज शान से सवारी लेकर अपने आत्मसम्मान की
उड़ूंगी जी भर कर मैं
जीवन की हर उड़ान को
है परिस्थिति विपरीत तो
बाज बनकर बादलों पर छा जाऊँगी
आदिशक्ति मैं अनादि हूँ अनंत हूँ
तन है नाजुक तो क्या
मन से मैं मजबूत हूँ
चली हूँ लेकर हर रुख हवाओ का आज अपने साथ लेकर
हौसलें मेरे बुलंद हैं
हर जगह मेरे ही तो रंग है
बात आकाश की हो या धरा की
मैं ही आधार हूँ
नवचेतना का मैं ही आह्वान हूँ
अष्टभुजाओ में मेरी परिवार है समाज है देश का कल्याण है
सावित्रीबाई फुले की शिक्षा, सरोजिनी नायडु की बहुमुखी प्रतिभा,
,आंजोली इला की चित्रकला मैं ही हूँ
कर्णम्ममलेशवेरी का स्वर्ण पदक मैं ही हूँ
वाणिज्य में उषासांगवान, इला इंदिरा राजारमन हूँ
मैं ही अमृता, महादेवी की रचना हूँ
मैं ही कल्पना,और सुनीता की अंतरिक्ष की उड़ान हूँ
आओ मेरे साथ मैं ही तुम्हारी पहचान हूँ।।।
नेहा जैन
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कविता