खोता बचपन

खोता बचपन 
                     { दोहा छन्द }
                       
खोता बचपन आज का , लदा   पीठपर   भार ।
बस्ते  का   है  वजन  से , बचपन  करे   पुकार ।।१।।
विद्यालय     जाते    रहे , पढ़ने   को   है   पाठ ।
लादे     रहते     पीठपर , किलोग्राम दस-आठ ।।२।।
निजी   पाठशाला   बढ़े , करते   विद्या  -  दान ।
बचपन  के  ऊपर सभी , लादे    बोझ    गठान ।।३।।
अल्प  उम्र  में   ही  लगे , पाठ   पढ़ाने    खास ।
कर   नर्सरी   प्रवेश    है , बचपन  हुआ  उदास ।।४।।
गिल्ली - डण्डे  लुप्त  हैं , भूला   बाल  समाज ।
आँख मिचौली सहित है , बाँटी  -  भौंरा  आज ।।५।।
रस्सी   खींच  हुआ  करे , खुशी  का  रहा  मूल ।
अट्ठी -  गोटी  -  फूँगड़ी , गये  सभी  अब  भूल ।।६।।
आठचार  सह   बागड़ी , गेंड़ी    हुई    विलुप्त ।
अनेक   सारे   खेल   हैं , आज  हुए  सब लुप्त ।।७।।
बचपन  खोया  पाठ  में , बढ़ा   उनपर  प्रभाव ।
अधिक अंक  लाने उन्हें , मिले   घर  में  दबाव ।।८।।
देख      रहे     दूरदर्शन , बैठ   कुण्डली   मार ।
चलचित्र     रहे    देखते , धारावाहिक      सार ।।९।।
दीन - हीन  परिवार  का , बच्चे    माँगें   भीख ।
करते  हैं   काम   घर  में , शाला नहीं  न सीख ।।१०।।
गायब  हुआ  बचपन  है , गया आज  बढ़ भार ।
आया  आधुनिक  युग है , स्पर्धा   का   बौछार ।।११।।
इसके   आगे  लड़कपन , आज रहा  दम तोड़ ।
कहे 'ठाकुर' सभी जगह , मचा  हुआ  है   होड़ ।।१२।।
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दि.०४.०३.२१ --जगतसिंह ठाकुर 'बंजारीवाले'
                    ९४०६०५७७६३ , ६२६६५२४२६१

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