डरते हैं

डरते हैं
ग़ज़ल
रदीफ़-से डरते हैं।
हर्फ़े-क़वाफ़ी-ई स्वर
क़ाफ़िया-दोस्ती
नापनी-२१२२   १२१२   २२/११२

अपनी   हम   बेबसी   से  डरते  हैं।
दिल  की  इस  बेक़ली  से डरते हैं।।

राज़  दिल  के  कहीं न खुल जायें।
पी   तो   लें   बेख़ुदी   से  डरते  हैं।।

आसमाँ क्या ज़मीं भी अपनी नहीं।
साँस  है   ज़िन्दगी   से   डरते   हैं।।

है नसीबों का कज मगर फिर भी।---ऐब
अपनी  हम  इस कमी से डरते हैं।।

जान  दुनिया  न  ले ग़में-उल्फ़त।
आँख  की  हम  नमी  से डरते हैं।।

हार   बाज़ी   गये   मुहब्बत  की।
अपनी इस मुफ़लिसी से डरते हैं।।

चाँद   तारों   से  दोस्ती  कर  ली।
फिर  भी हम चाँदनी से डरते हैं।।

क्या "बिसरिया"करे कोई कह दे।
हम  तो  अपनी ख़ुदी से डरते हैं।।

बिसरिया"कानपुरी"

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