मिटा दो आकर पीर हमारी
चक्र हाथ में तुम रखते हो
फिर यह चक्कर कैसा
मां बाप से बड़ा हो गया
अब दुनिया में पैसा
सुख सुविधाएं जुटाने में
बीत जाती जिंदगी सारी
धन के पीछे मानवता दौड़ी
मानव के पीछे महामारी
त्रिपुरारी गिरधारी
मिटा दो आकर पीर हमारी
रमाकांत सोनी नवलगढ़
जिला झुंझुनू
राजस्थान
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कविता