ना जाने क्यों किसका इंतज़ार कर रही मेरी आंखें।
ना जाने क्यों इश्क-ए-महेक महसूस कर रही मेरी सांसे।
जैसे चमन-ए-फ़िजा कर रही हैं इश्क भरी बातें।
ना जाने क्यों किसका इंतज़ार कर रही मेरी आंखें।
ऐसा लगता हैं.....
खुद इश्क ढूंढ रही हो मेरे लिए इश्क भरी राहें।
जैसे शब-ए-तारीक में.....
खुद महताब निकला हो अपने पुनम की तलाश में।
शायद मेरी तरह वो भी निकला हैं.....
अपने साथी की तलाश में।
ना जाने क्यों किसका इंतज़ार कर रही मेरी आंखें।
ये नाकामी-ए-हयात नहीं मेरे ईख्तियार में।
के बस एतबार है इसी गुल-ए-वफ़ा के इंतज़ार में।
"बाबू" मेरी कहत-ए-जिस्त की पूरी होंगी सारी मुरादें।
ना जाने क्यों किसका इंतज़ार कर रही हैं मेरी आंखें।
--- बाबू भंडारी ( हमनवा ) बल्लारपुर.....
मो... 7350995551.....
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गज़ल