प्रेम करके मैं हार गई!
मेरा है सुकुमार कलेजा,
तुम निर्दयी कठोर।
चाहो तो मुझे बूड़त उबारों
नाही तो प्राण गयी।
प्रेम करके मैं हार गई!
सुना प्रेम की एक ही राह,
राधा रसिकशिरोमणी कान्हा।
रटत-रटत अब हुईं बावरी,
मन मधुवन बन गई।
प्रेम करके मैं हार गई!
रैन-दिवा बस तोहे अराधूं,
नैन-कटोरा से पग तेरा पखारूं।
सरल-स्नेह की कोमल डोरी से,
स्वयं को बांध लई।
प्रेम करके मैं हार गई!
जगत प्रेम का सार है, फिर क्यों-
मृगतृष्णा का जाल बिछाया।
विरह ज्वाला में जल रही विरहिन
अब तो थामो कलाई।
प्रेम करके मैं हार गई!
निशा भास्कर (शिक्षिका)
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गीत