क्यों कर बदल गया इंसान
आज का इंसान बन गया है शैतान
मानवता को भूल गया है,बन बैठा पाषाण
पल भर मे हर लेता है मासूमों की.जान
काम , क्रोध मद,लोभ मोह मे लिप्त है आज का इंसान
न ही कोई दीन कोई न कोई ईमान
पैसा ही धर्म और पैसा ही है ईमान
पैसे के पीछे भाग रहा है नादान इंसान
बात बात पर आपा खोना ,हथियार लेता तान
जानकर भी बन रहा है मासूम और अनजान
दया ,धर्म को भूल कर बन गया हैवान
धोखा दगा फरेब छल करना है इसकी पहचान
इनके कुकर्मों से आम जन है परेशान
कुदरत को चुनौती दे रहा
प्रकृति से छेड़छाड़ कर रहा
वनों और पेड़ों को नष्ट कर रहा
नहरों और जमीन पर अतिक्रमण कर रहा
विनाश को निमंत्रण दे रहा
यह कैसा समय आया है
जिसे कोई नहीं समझ पाया है
हर जगह मौत का तांडव और भय का साया है
कुदरत ने यह कैसा खेल रचाया है
हे भगवन यह कैसी तेरी माया है
न कोई शर्म, न कोई लिहाज़ है
शर्म को त्याग कर, ओढ़ा वेशर्मी का ताज़ है
वेशर्मी को अपना लिया है, आती नहीं लाज है
कोई नहीं सुन रहा है अंतरात्मा की आवाज है
हे मानव मानवता के पथ पर चल
सुंदर बना ले जीवन का हर पल
अशोक शर्मा वशिष्ठ
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कविता