छोड़ मुबाइल तिक-तिक कर
बन रेल फिर छुक-छुक कर।
सुबह-शाम तुम खूब पढ़ो
मुश्किल पथ हो निकल पड़ो।
बैठ मुबाइल सेहत जाती
सैर सपाटे जिया लुभाती।
स्कूल चलो तुम खूब पढ़ो
हो मन में सेवा भाव गढ़ो।
तुम तन-मन से गोल लगाओ
श्रद्धा का ना मोल लगाओ।
जिद्दी होकर बढ़ जाओगे
मंजिल तुम जल्दी पाओगे।
धन्यवाद।
प्रभाकर सिंह
नवगछिया, भागलपुर
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बाल कविता