नज़्म
तुमने तो मोहब्बत क्या समझा?
समझा होगा सिर्फ़ एक कशिश,
ऐ! रब क्यों होता है ऐसा मुझे भी,
ज़रा रोक मै सकू यहीं तो बड़ी बात
तुम्हारा कोई होगा साथी,
जो तुमको शायद रखता है अपने मन में, रफ़ाकत निभाना तुम मगर उसके भरोसे पर,
जो भी हो जाय अब तो
कहीं दूर दरिया के तट पर तो,
अंबर के उस पार तक,
ले जायगा लेकिन अपनी जज़्बो से, हकीक़त में यूं कहा
मयकश होगा वो,तो तुम भी बन जाओगे,पूछे अगर कोई, कहोगे आलम है ऐसा अब,आज जो तुम हो, कल कुछ और बन जाओगे,
इल्ज़ाम फिर दे दोगे तुम किसी दूजे पर
हो उस पार तुम,फिर भी ना जाने कैसे, मन को मोहित कर देते हो पल में,अब तो मुझे भी यूं डर है के, कहीं दे ना दू धोखा अपने परवरिश को
धन्यवाद
मानव दे
बोंगाईगांव, असम
(भारत)
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