आज रात सपने में मेंरे कोरोना मिलने आया
रो रो कर उसने अपना दु:खडा़ हमें सुनाया
मेंरा कोई दोष नहीं है चीन ने मुझको खोजा
मैं तो चैन से पड़ा हुआ था उसी ने मुझको भेजा
मेरी उसकी शर्त लगी तू बड़ा या एटमबम है
मैंने कहा नहीं भइया बम से ऊंचा मेंरा परचम है
ऐ सुनकर फिर एटमबम ने था मुझको ललकारा
फिर क्या था मैंने भी दुनिया को दिखा दिया ये नजारा
सारी दुनिया अब परेशान है अब सबको मरना है
चाहे जितना कर लो उपाय अब किसी को ना बचना है
फिर भारत के ऋषियों मुनियों ने मुझको ललकारा
अब मैं डरता घूम रहा हूँ छिपता हूँ मारा मारा
भारत के ऋषियों व मंत्रों की ताकत से मैं ना बच पाऊंगा
इसी तरह से लडा़ जो भारत तो मैं एकदम मिट जाऊँगा
कवि विद्या शंकर अवस्थी (पथिक)
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कविता