बहर: 1222,1222,1222,1222
अकेला मै रहा अपने डगर में जो खड़ा देखा,
अब दुनिया तो नीचे मै ऊपर ज़माना पड़ा देखा
नज़र है कितना जो पर होते मैने वो तो देखा,
अब लोगों के नाज़ नहीं घमंड वो बड़ा देखा
कलम अपनी गगन मै यूं कहता मै तो लिखा देखा,
मगर यह तो धुआं जैसा समा नज़ारा ज़रा देखा
बता जो मै रहा हूं वो भला कोई कैसे देखा,
नज़ारे सब अभी मै बस ग़म ए हयात हरा देखा
ज़मीं पे यूं गुल ए बहार नहीं वो कोई नैन देखा,
अगर मौसम बदल जाता मै तो उमंग भरा देखा
मक़तल में मै देखा कोई क़तल करते हुए देखा,
लेते हाथो मै साग़र जो पीते जाम ए सुरा देखा
नसीबा जो मेरे जान ए दिल से की अब नज़ारा देखा,
कितना हुआ मगर ना जाने चाहत के नारा देखा
ग़म ए रूह ए दिल नहीं और दे जो "मानव" की विनय देखा,
हुआ होगा शायद अब यह कोई सच खरा देखा
मानव दे
बोंगाईगांव, असम
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गज़ल