मुहब्बत
ख़्वाब हर रात तेरे ही आते रहे।
और दिल तुम हमारा जलाते रहे।।
रूबरू यार दीदार मुश्किल न कर।
हर तरह से तुम्हें हम मनाते रहे।।
ये रिवायत मुहब्बत की होती नहीं।
क्यों सितम इस तरह आप ढाते रहे।।
हम जफ़ाओं को भी तेरे देखे नहीं।
हाँ भले आप नश्तर चुभाते रहे।।
है तग़ाफ़ुल भी तेरा ग़वारा हमें।
हम मुहब्बत कीं रस्में निभाते रहे।।
प्यार की प्यास हर दिन बढ़ी जाए है।
तिश्नगी आँसुओं से बुझाते रहे।।
तेरी मर्ज़ी है चाहो न चाहो हमें।
हम मुक़द्दर को बस आज़माते रहे।।
प्यार करके"बिसरिया"नहीं भूलता।
पर ज़माने से इसको छुपाते रहे।।
बिसरिया"कानपुरी"
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