कोराना की अतिभारी लहर
छोट हुआ पहली लहर।
बचते घर रहके ही सभी
जल्दी जायेगी कहर।
लो माना सबको काम है
किन्तु सभी बदनाम है।
गर लापरवाही ना कि ये
तो खेल तमाम है।
पहने न मास्क फाइन दिये
ना सनटाईजर किये।
दूरी और नहीं जो रखे
सजा सगी दोस्ती किये।
जीवनशैली ना बदलते
प्रकृति नहीं रोती कभी।
कहे इम्युनिटी कमजोर जो
ना ताकत सोती कभी।
चलते चलो थको ही नहीं
जैसे घोड़ा दौड़ है।
जो रूक जाय मरते वही
चलें जिन्दगी और है।
धन्यवाद।
प्रभाकर सिंह
नवगछिया, भागलपुर
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कविता